बिहार विधानसभा उपचुनाव 2019 : पूरे चुनाव का लेखा-जोखा

बिहार विधानसभा उपचुनाव 2019 : 21 अक्टूबर को कम मतदान के साथ आयोजित हुए बिहार विधानसभा उपचुनाव का रिजल्ट कल यानी 24 अक्टूबर को घोषित कर दिए गए हैं. इस बार का विधानसभा उपचुनाव कोसी, सीमांचल और सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर, किशनगंज, भागलपुर के नाथनगर विधानसभा और बांका के बेलहर सीटों पर हो रहा था.
जदयू को एक सीट पर जीत हुई नसीब
कल शाम तक रिजल्ट हो चुके थे. इनमें नाथनगर की सीट पर जदयू को जीत नसीब हुई है. सिमरी बख्तियारपुर, बेलहर पर सीट पर राष्ट्रीय जनता दल का कब्ज़ा हो चुका है. इसके अलावा इस बार के विधानसभा उपचुनाव में मुस्लिम कार्ड खेलते हुए ह्यदेरबाद के संसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के विधायक किशनगंज से जीत कर आये हैं. इसके अलावा दरौदा से निर्दलीय विधायक जीत कर आये हैं.
बिहार विधानसभा उपचुनाव 2019 : जीते हुए विधायकों के नाम
-
सिमरी बख्तियारपुर – जफ़र आलम (राष्ट्रीय जनता दल)
-
बेलहर – नामदेव यादव (राष्ट्रीय जनता दल)
-
नाथनगर- लक्ष्मीकांत मंडल (जनता दल यूनाइटेड)
-
दरौदा – कर्णजीत सिंह (निर्दलीय)
-
किशनगंज -कमरुल होदा
इसके अलावा समस्तीपुर सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में लोक जनशक्ति के उम्मीदवार प्रिन्स राज जीतकर सांसद बने हैं.
विधानसभा की ताज़ा तस्वीर
बिहार विधानसभा उपचुनाव 2019 संपन्न होने के बाद अब बिहार विधानसभा की वर्तमान तस्वीर ऐसी बन चुकी है. अब आरजेडी– 79 + 2 (आज जीते, कुल- 81), जेडीयू– 69 + 1 ( आज जीते, कुल -70), बीजेपी– 54, कांग्रेस– 26, लेफ्ट– 3, एलजेपी– 2, हम– 1, निर्दलीय– 4+1 ( आज जीते, कुल -5) और AIMIM- 1 (आज जीते) के विधायक हैं.
जदयू से हुई गलती
जदयू इस उपचुनाव में केवल इसलिए चूक गई क्योंकि सही समय पर गलत उम्मीदवार को मैदान में उतर दिया जिसके नतीजा हुआ जनता का फुल रिजेक्शन हालाँकि एक सीट जीतकर उसके कुछ राहत ज़रूर मिली होगी. पार्टी के लोग अब दबे स्वर में ही सही, इस बात को स्वीकार कर रहे है कि गलत उम्मीदवार जातिगत समीकरण देख के तय नहीं हुआ.
राजद का एम+वाई फैक्टर चल गया
इस बार के चुनाव में राजद अपने परंपरागत एम+वाई फैक्टर यानी मुस्लिम प्लस यादव समुदाय के वोट बैंक के सहारे गैर भाजपाई-जदयू वोटों को अपनी तरफ ट्रांसफर करने में कामयाब रही और दो सीटें हासिल करी.
ओवैसी की शानदार एंट्री
सोच समझकर चुनिंदा सीटों पर चुनाव लड़ना असदुद्दीन ओवैसी के लिए काम कर गया और किशनगंज में ध्रुवीकरण की बदौलत उन्होंने बिहार विधानसभा में पहली बार अपना विधायक जितवाकर भेजा है.
भाजपा को सोचने की ज़रुरत
भले ही कुछ सीटों पर सहयोगी लड़ रहे हो लेकिन बाकी सीटों पर आमने-सामने के टक्कर में भाजपा कहीं भी नहीं टिकी और न ही उसका काडर और वोट बैंक जदयू के किसी काम आया. यदि अगले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनना है तो भाजपा को अपनी रणनीति पर फिर से सोचने की ज़रुरत है.